दीवार में एक खिड़की रहती थी पर कुछ विचार
किताब का नाम - दीवार में एक खिड़की रहती थी
लेखक - विनोदकुमार शुक्ल
प्रकार - उपन्यास
लगभग चार महीनों बाद आखिरकार ये किताब खत्म हो ही गई। यह किताब मैंने अपने जन्मदिन पर अपने लिए ली गई चार किताबो में से एक थी। मैने इससे पहले कभी किताब लेखक, विनोदकुमार शुक्ल का नाम नहीं सुना था पर अब मैं उनकी लेख शेली का र्पेमी हो गया हुँ और उनकी बाकी किताबे पढ़ने के लिए उत्सुक हुँ।
दीवार में एक खिड़की रहती थी, एक मध्यवर्गीय, महाविद्यालय के शिक्षक रघुवर प्रसाद की कहानी है। उनके एक कमरे के किराये के मकान में एक खिड़की थी जिससे उपन्यास को शीर्शक मिला। खिड़की के इस पार, रघुवर प्रसाद का घर और उस पार एक अलग बगीचों, तालाब वाली दुनिया थी। ये रघुवर प्रसाद और उनकी पत्नी, सोनसी का निकास (escape) था। कहानी में कई और पात्र आते-जाते रहे हैं। विनोदकुमार शुक्ल ने कहानी को हास्य शैली में लिखा है। कई बार ऐसे हास्य वर्णन आते कि पता ही नहीं लगता क्या से क्या हो गया। कहानी को कोई बड़ा उतार चढ़ाव नहीं आता और पूरी कहानी का माहौल हलका बना रहता है। पढ़ने लायक उपन्यास है यह।
पुनश्च (PS) - लेख में “प” के पेर में “र” नहीं आ रहा, जबकी मोबाइल पर आ रहा है पर कोशिश जारी है। कंप्यूटर पर हिन्दी लेखन में अभी काफी कुछ सिखना है।